Wednesday, October 21, 2009

थम गई हैं विश्व की आँखें ,
यहीं इन्सानियत की क्षीण साँसें चल रही हैं !
प्रति निमिष के साथ युग पलकें उठाता
डोलता विश्वास आँखें जल रही हैं !
आज मानवता सिहरती ,
आज जीवन ले रहा निश्वास गहरी!
आज अंबर पूछता मैं किस प्रलय का मंच हूँ ,
यह शून्य की आँखें बनी हैं आज प्रहरी !

आज सिसकी भर रही संस्कृति
सृष्टि का उल्लास बेसुध सा पडा है !
स्वयं मानव के करों में प्रलय है ,
सृष्टा स्वयं विस्मित खडा है !
*
दीप धरा के बुझ जायेंगे ,
जलने की अंतिम सीमा के पार क्षार ही शेष बचेगी ,
विश्व-शान्ति का व्यंग्य रूप ,
मानवता की सामर्थों का उपहास उडाती !
और प्रकृति के हाथ उठायेंगे मानवता का शव !
नीर ढालता दैन्यभरा सृष्टा का वैभव !
कफन बनेगी क्षार और श्मशानभूमि होगी यह धरती !
*
उस अथाह नीलाभ गगन से बरसेंगे दो बूँद
कि ले कर कौन चले मानव की अर्थी !
मौन,शान्,निष्प्राण धरा पर तब ,जीवन के गान न होंगे !
धरती का वह रूप कि जिसमें
पतन और उत्थान न होंगे १
तारों का वह लोक धरा को विस्मित सा होकर ताकेगा !
मानवता के उस प्रयाण के बाद ,
निर्जन ,निर्जीवन ,भू-तल का वृत्त
शून्य चक्कर काटेगा !
*

5 comments:

  1. vakai vishwa ki aankhen thum gayi hain

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  2. vishv main faile katu satyo ko darshati aapki rachna man me manthan paida karti sunder shabdo se sushobhit samaj par chot karti hui ek damdar rachna ban padi hai..badhayi.

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  3. हिंदी में लेखन के लिए स्वागत एवं शुभकामनाएं

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  4. आपका लेख पड्कर अछ्छा लगा, हिन्दी ब्लागिंग में आपका हार्दिक स्वागत है, मेरे ब्लाग पर आपकी राय का स्वागत है, क्रपया आईये

    http://dilli6in.blogspot.com/

    मेरी शुभकामनाएं
    चारुल शुक्ल
    http://www.twitter.com/charulshukla

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  5. चिटठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. मेरी शुभकामनाएं.
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    हिंदी ब्लोग्स में पहली बार Friends With Benefits - रिश्तों की एक नई तान (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]

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