Wednesday, October 28, 2009

देवता ,स्वीकारो ना स्वीकारो

देवता, स्वीकारो ना स्वीकारो !
ये तो तान मेरी गान तो तुम्हारे .
सौंप जाऊँ तुम्हें साँझ या सकारे ,
जी रहे हैं अनुरक्ति के सहारे ,
मेरे प्राण मे तुम्हारे राग सोये ,
आई द्वारे ,पुकारो ना पुकारो !
*
रह जाय चाहे जानी-अनजानी
मेरी साँस जो कहेगी वो कहानी
एक बात जो कभी न हो पुरानी ,
अश्रु वेदना को घोल के लिखेंगे,
आँख खोल के निहारो ,ना निहारो !
*
प्रात जाये,साँझ गाये रंग घोले,
मेरे प्राण मे विहंग एक बोले ,
दूर हेरते सितारे नैन खोले ,
ये तो भेंट में चढी हूँ मै स्वयं ही,
सिंगार तुम सँवारो ,ना सँवारो !
*
देर नहीं ,दूर नहीं बेला ,
लौट आया द्वार पाहुना अकेला ,
उठ रहा उलझनों का एक मेला ,
आँख मे अब नहीं रहे किनारे ,
सामने उबारो ,ना उबारो !
*
एक बेडी पहनाई शक्ति ने ही
अंत होगा एक अनुरक्ति मे ही ,
आज बाजी लगा दी भक्ति ने ही ,
मुक्ति मे नहीं ये कामना फलेगी ,
सोचना क्या ,तुम हारो ,ना हारो !

No comments:

Post a Comment