Saturday, October 10, 2009

तेरी मुक्ति !
मेरे स्वर तब तक न थमेंगे
,जब तक जीवन बीत न जाये
तेरी मुक्ति तभी है जिस दिन
मेरी वाणी गीत न गाये !
*
और नहीं तो बँधे रहो ,
मेरे स्वर के बंधन चंचल हैं !
बरबस मन में उतर चलेंगे ,
मेरे अंतर्गीत विकल हैं !
*
तुम नरहो तो शायद फिर ,
सारा संसार विजन बन जाये !
तुम न सुनो तो हृत्तंत्री की
तान न फिर शायद जग पाये
*
तुम न सुनो तो संभव है ,
मेरी वाणी फिर गीत न गाये !
तुम न लखो तो शायद यह अस्तित्व ,
जगत में ही घुल जाये !
*
चलती रहें उजाड़ हवायें ,
जीवन की आसायें बिखरा ,
छायेगी अनजान बने से
सपनों पर बेसुध सी तंद्रा !
*
अब के बाद न जाने कितने
दिन गुमसुम से ढल जायेंगे
जाने कितने आज सदा को ,
इसी तरह बन कल जायेंगे !
*
दृष्टि उठेगी महाशून्य में ,
सम्मुख कोई चित्र न होगा !
अब के बाद अकेलेपन का
शायद कोई मित्र न होगा !
*
दूर रहो तो एक मिलन की
चाह जगाते रहना प्रिय तुम ,!
मेरे स्वर की दुनियां में ,
मृदु राग जगाते रहना प्रिय तुम !
*
यों ही रहना -कहना है
जब तक ये साँसें रूठ न जायें
मुक्ति मिलेगी तुमको जिस दिन
मेरी वाणी गीत न गाये !
*

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