Monday, March 29, 2010

अगली बार

पार करते हुए जब जन्मान्तरों को
पहुँच जाऊँ यहीं अगली बार !
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और सुन्दर यह धरा उस बार होगी ,
आज की यह कल्पना साकार होगी ,
यही प्यारे दृष्य ,यह कलरव खगों का
सुखद होगा रास्ता मेरे पगों का ,
राग भर मन सुरभि-चंदन -
भावना अंकित यहाँ हर बार
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उगे होंगे नये अंकुर नए पत्ते
स्वर अधिक कुछ पगे होंगे नेह रस से !
जान लेगा बात मन की दूसरा मन ,
सँजोए नवरस महकते पुष्प के तन
चित्र-वीथी सी दिशाओं के पटों पर
जहाँ आऊँ पुनः अगली बार !
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Friday, March 19, 2010

अक्षरा -

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तुम प्रतिष्ठित रहो सुयश प्रदायिनी बन
हृदय में निष्ठा स्वरूप बसो निरंतर !
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प्रभा बन सुविकीर्ण प्रतिपल नयन में हो
बन अचल विश्वास अंतर में समाओ ,
समर्पित प्रति क्षण तुम्हारे प्रति रहूँ
तुम सूक्ष्मतम अणु रूपिणी सी व्याप जाओ!
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शक्ति बन कर समा जाओ प्राण-मन में
त्रिगुणमयि चिन्मयातीता परम सुन्दर !
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राग में मेरे समाओ मंगला सी,
शब्द मेरे अक्षरा जीवन्त चिर तुम ,
दिव्यता बन मृत्युमय तन में रमो,
आ इन स्वरों में बसो चित् की रम्यता बन ,
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देवि ,तुम हर रूप में बिम्बित रहो
ये वृत्तियाँ विश्राम लें लवलीन हो कर!
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