Sunday, December 26, 2010

भूत

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भूत कभी मरता नहीं .

जितना भागोगे ,घेरेगा .

दौड़ना मत, भगाता चला जाएगा.

दूर ,और दूर !

तंत्र-मंत्र अभिचार , सब बेकार ,

अपना मौका तलाशता

हवाएँ सूँघ लेता है .

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अकेली ,कुछ कमज़ोर ,

शिथिल-सी मनस्थिति देख

अनायास छाया सा घिर ,

तन-मन आविष्ट-अवसन्न कर

छोड़ देता है किसी अगाध में .

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जितना भागोगे ,घेरेगा ,

भगाता चला जाएगा ,

विस्मृति भरी दूरियों तक.

और उसके लिए सच है -

जहाँ पलट कर देखो ,

पीछे लग जाएगा .

क्योंकि भूत कभी मरता नहीं .

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Thursday, December 2, 2010

अनलिखा

अनलिखा वह पत्र मन ने पढ़ लिया होगा !

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मुखर हो पाई न चाहे कामना तो थी ,
सत्य हो पाई न हो , संभावना तो थी ,
बहुत गहरे उतर अंतर थाह लेता जो
रह गई अभिव्यक्ति बिन पर भावना तो थी,
उड़ा डाला आँधियों ने और तो सब कुछ ,
किन्तु भारी-पन यथावत् धर दिया होगा
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कुछ न मिटता, रूप बस थोड़ा बदल जाता ,
स्वरों ने गाया न हो पर गीत रच जाता.
अनबताया रह गया कुछ मौन में डूबा
रेतकण सा अँजुरी से रीत झर जाता .
रिक्तियों को पूरने की अवश मजबूरी
जो मिला स्वीकार नत-शिर कर लिया होगा !
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