Wednesday, October 28, 2009

मै चेतन हूँ

मै चेतन हूँ , मुझको ये जडता के बंधन स्वीकार नहीं ,
उन्मुक्त पगों को मनचाहा चलने दो प्रिय,
मुझको इस उथले जग जीवन से प्यार नहीं !
*
ये निष्क्रिय चेतनता लेकर मैं इससे क्या निर्माण करूँ ,
इस बँधे हुये जग-जीवन में कैसे अपने उद्गार भरूँ ,
मैं मुक्त गगन की चल चपला ,बंधन स्वीकीर नहीं मुझको
पर नभ से भाग न जाऊँगी ,मेरा अनुपम संसार यहीं !
*
ये बँधी हुई वाणी ,बंधनमय गति ,ये बँधे हृदय ,
ये झरते से विश्वास और अंतर मे छिपे हुये संशय !
मेरा कल्पना लोक विस्तृत ,अधिकार नहीं सीमाओं का ,
पर चुभनेवाले स्वतंत्रता के ध्वंस मुझे स्वीकार नहीं !
*
ये बढती हुई पिपासायें ,ये मानव के गिरते से डग ,
विज्ञानो के निर्मम प्रयोग ,ये संस्कृतियों के पग डगमग ,
ये मूक उदास चरण ,,ये प्रतिक्षण बुझती जाती स्नेह-शिखा
ये दूर दूर ही रहें न करलें हम पर भी अधिकीर कहीं !
*

युग की आँखों ने देखा है वह प्रलय कि जो होनेवाला !
वह ध्वंस ,नहीं निर्माण ,आँधियों से पूरित ,भीषण ज्वाला !
उठ रही क्षितिज से ऊपर प्रलयंकरी ज्वाल ,
आलोक शिखा यह नहीं ,वसंती पुष्पों का शृंगार नहीं !
*
यह विषमय मंथन और सृष्टि मे बिछता जाता घोर गरल ,
अणु ज्वालाओं मे जल कर सुन्दर सृष्टि ,बचेगी क्षार अतल !
युग की आँखों फेरो न द-ष्टि ,जागो ,औ कवि के स्वर जागो ,
स्वीकार न करना वह करुणा जिस को मानव से प्यार नहीं !
*

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