Wednesday, December 23, 2009

जाते बरस प्रणाम

*
महाकाल की एक सांस तुम ,
एक चक्र बीता !
क्या दे सके तुम्हें हम ,
इसका कौन करे लेखा ?
इतने काल खंड का जो कुछ ,
देव , तुम्हारे नाम !
*
शेष रहा जो क्षमा करो ,
दे आशिष चलती बार .
जो तुमने दी छाँह ,
उसी का स्वीकारो आभार !
आशा -आकाँक्षायें ले
तुम आये गठरी बाँध .
जितना पात्र हमारा था .
तुम डाल चले निष्काम .
चलते बरस ,प्रणाम !
-प्रतिभा.

1 comment:

  1. विगत वर्ष की अंतिम संध्या पर यह गीत तुम्हे अर्पण है ! वाह वाह ....

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