Monday, November 1, 2010

जीवन-काँवर

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भौतिकता और चेतना के दो घटवाली जीवन-काँवर ,
लेकर आता है जीव ,श्वास की त्रिगुण डोर में अटका कर ,
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हर बार नये ही निर्धारण ,काँवरिये की यात्रा के पथ
चक्रिल राहों पर भरमाता देता फिर बरस-बरस भाँवर .
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घट में धारण कर लिया आस्था-विश्वासों का संचित जल
अर्पित कर महाकाल को फिर, चल देता अपने नियतस्थल !
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2 comments:

  1. महातत्व में अर्पण कर के,
    शेष तत्व, जीवन-अवसर के।

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  2. A metaphorical presentation...! प्रतीको-बिम्बों ने इस ‘लघु’ काव्य-रचना को ‘विशाल’ बना दिया है...बधाई!

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