Thursday, October 7, 2010

जाने के बाद

मत रोओ शकुन्तला ,

मत रो बहिन .


वे निकल गए आगे

थोड़ी देर बाद चलेंगे हम .

*

जाना अकेले है ,

आए भी थे अकेले ,

इस बीच देखे कितने मेले ,

कुछ गुज़र गया .कुछ चल रहा है

बीत जाएगा यह भी.

न तुम दे सकोगी साथ मेरा

न मैं तुम्हारा

अगर चाहें भी तो

*

उनके साथ थीं तुम

मैने भी अनुभव किया था उन्हें ,

इस दूरी में शामिल की गई थी मैं ,

और मन ने मान लिया था साथ हूँ .

उनके जाने का खालीपन ,व्यापा है मुझे भी !

पर मैं नहीं रोई ,

वे कौन थे मेरे ,

बस अनुभव ही तो किया था यहाँ से

तुम भी मत रोओ ,शकुन्तला .

चलेंगे हम-तुम एक दिन !

जिसकी बारी जब आए .

*

मना रही हूँ -

वे शान्ति से रहें

जहाँ हों तुष्ट रहे !

हमारे लिए भी मनाएगा कोई ,

जाने के बाद .

चलना है शकुन्तला, हमें भी ,

रोओ मत बहिन ,

दुख मत करो जाने दो उन्हें

व्यथा ,और विवशताओँ से दूर

चिर- शान्ति में .

*

2 comments:

  1. बहुत खूबसूरती के साथ शब्दों को पिरोया है इन पंक्तिया में आपने .......

    पढ़िए और मुस्कुराइए :-
    सही तरीके से सवाल पूछो ...

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  2. विवशतायें जीवन को रोने के लियें विवश न कर पायें, इतनी तो दृढ़शक्ति हो हममे।

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