Sunday, November 15, 2009

अधूरी तपस्या तुम्हें माँगती है !

शपथ है तुम्हें इस विरागी हृदय की
अधूरी तपस्या तुम्हें माँगती है !
*
न जीवन रहेगा ,न आँसू बचेंगे ,
न पिर-फिर यही राग चलते रहेंगे ,
न मिट्टी इसी रूप में रह सकेगी ,
सदा ही न ये प्राण बहले रहेंगे !
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मिटी आश ,चिन्ता न इसकी मुझे ,
पर न मिट पा सकेंगी अभी साधनाये ,
ढलेगा दिवस और रजनी ढलेगी ,
चलेंगी अभी मौन आराधनाये !
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स्वयं ही तुम्हें पास आना पड़ेगा
कि ये जल रही प्राण सी आरती है !
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अभी वेदना श्वास को बाँधती ,
पर रहेगा सदा ही न अस्तित्व मेरा ,
जनम-मौत खींचे लिये चल रहेंहैं ,
मिलोगा कहीं तो मुझे ठौर मेरा !
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अरे, पत्थरों से भले तुम रहो ,
पर कभी आवरण यह हटाना पड़ेगा ,
कभी मृत्तिका में खिलेंगे सुमन वह,
कि जिनको तुम्हें सिर चढ़ाना पड़ेगा !
*
अरे देवता ,तुम न पत्थर रहोगे
कि जब तक यहां भावना जागती है !
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