Thursday, December 2, 2010

अनलिखा

अनलिखा वह पत्र मन ने पढ़ लिया होगा !

*
मुखर हो पाई न चाहे कामना तो थी ,
सत्य हो पाई न हो , संभावना तो थी ,
बहुत गहरे उतर अंतर थाह लेता जो
रह गई अभिव्यक्ति बिन पर भावना तो थी,
उड़ा डाला आँधियों ने और तो सब कुछ ,
किन्तु भारी-पन यथावत् धर दिया होगा
*
कुछ न मिटता, रूप बस थोड़ा बदल जाता ,
स्वरों ने गाया न हो पर गीत रच जाता.
अनबताया रह गया कुछ मौन में डूबा
रेतकण सा अँजुरी से रीत झर जाता .
रिक्तियों को पूरने की अवश मजबूरी
जो मिला स्वीकार नत-शिर कर लिया होगा !
*

4 comments:

  1. बहुत खूब, बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति, लिखते रहिये ...

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  2. रह गई अभिव्यक्ति बिन पर भावना तो थी,
    भावना है तो अभिव्यक्ति भी होगी

    सुन्दर भाव संयोजन

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  3. अनलिखा पत्र पढ़ लेना ...फिर भी यह तो भ्रम बना ही रहता है

    अनबताया रह गया कुछ मौन में डूबा
    रेतकण सा अँजुरी से रीत झर जाता

    बहुत कुछ नहीं पढ़ पाया होगा ..अच्छी भावप्रवण अभिव्यक्ति

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  4. रिक्तियों को पूरने की अवश मजबूरी

    पता नहीं कितनी जिन्दगी खा जाती है यह।

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