*
वह प्रथम छंद,
बह चला उमड़ कर अनायास सब तोड़ बंध,
ऋषि के स्वर में वह वह लोक-जगत का आदि छंद !
*
जब तपोथली में जन-जीवन से उदासीन,
करुणाकुल वाणी अनायास हो उठी मुखर
क्रौंची की दारुण -व्यथा द्रवित आकुल कवि-मन
की संवेदना अनादि-स्वरों में गई बिखर .
*
अंतर में कैसी पीर ,अशान्ति और विचलन
ऐसे ही विषम पलों में कोई सम्मोहन
स्वर भरता मुखरित कर जाता अंतर -विषाद
मूर्तित करुणा का निस्स्वर असह अरण्य रुदन ,
*
तब देवावाहन - सूक्त स्तुतियाँ सब बिसार
कवि संबोधित कर उठा,' अरे ,ओ ,रे निषाद..'
स्वर प्राणि-मात्र की विकल वेदना के साक्षी
शास्त्रीय विधानों रीति-नीति से विगत-राग.
*
जैसे गिरि वर से अनायास फूटे निर्झर
उस आदि कथ्य से सिंचित हुआ जगत-कानन,
कंपन भर गया पवन में जल में हो अधीर ,
तमसा के ओर-छोर ,गिरि वन ,तट के आश्रम !
खोया निजत्व उस विषम वेदना के पल में
तब प्राणिमात्र से जुड़े झनझना हृदय- तार
उस स्वर्णिम पल में ,बंध तोड़ आवरण छोड़
ऊर्जित स्वर भर सरसी कविता की अमिय-धार .,,
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वह प्रथम छंद,
बह चला उमड़ कर अनायास सब तोड़ बंध,
ऋषि के स्वर में वह वह लोक-जगत का आदि छंद !
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जब तपोथली में जन-जीवन से उदासीन,
करुणाकुल वाणी अनायास हो उठी मुखर
क्रौंची की दारुण -व्यथा द्रवित आकुल कवि-मन
की संवेदना अनादि-स्वरों में गई बिखर .
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अंतर में कैसी पीर ,अशान्ति और विचलन
ऐसे ही विषम पलों में कोई सम्मोहन
स्वर भरता मुखरित कर जाता अंतर -विषाद
मूर्तित करुणा का निस्स्वर असह अरण्य रुदन ,
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तब देवावाहन - सूक्त स्तुतियाँ सब बिसार
कवि संबोधित कर उठा,' अरे ,ओ ,रे निषाद..'
स्वर प्राणि-मात्र की विकल वेदना के साक्षी
शास्त्रीय विधानों रीति-नीति से विगत-राग.
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जैसे गिरि वर से अनायास फूटे निर्झर
उस आदि कथ्य से सिंचित हुआ जगत-कानन,
कंपन भर गया पवन में जल में हो अधीर ,
तमसा के ओर-छोर ,गिरि वन ,तट के आश्रम !
खोया निजत्व उस विषम वेदना के पल में
तब प्राणिमात्र से जुड़े झनझना हृदय- तार
उस स्वर्णिम पल में ,बंध तोड़ आवरण छोड़
ऊर्जित स्वर भर सरसी कविता की अमिय-धार .,,
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उस स्वर्णिम पल में ,बंध तोड़ आवरण छोड़
ReplyDeleteऊर्जित स्वर भर सरसी कविता की अमिय-धार .,,
wah wah...
aadarneeya satish saxena ji ke madhyam se aapke bare me pata chala .. pahli bar aapko padha .. bahut hi achha likhti hai aap
प्रथम छंद की यात्रा ही है जो आप इतनी मधुरता से आपकी कविता में प्रकट है ।
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....कृपया आप अपने ब्लॉग पर followers का आइकॉन लगा लें...जिससे आपकी रचनाओं तक पहुंचना हमारे लिए सरल होगा ..
ReplyDelete@ प्रतिभा जी !
ReplyDeleteपहले ब्लाग में लोगिन करें
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सेव करें
उम्मीद है आप कर लेंगी अगर दिक्कत हो तो लिखें !
मंगलवार 06 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
adbhut...prakand shabdkosh hai aapka..aur lekhan ki jyoti anupam
ReplyDeletebahut bahut khubsurat