मेरे विश्वासों में उतरो
मेरे विश्वासों में उतरो ,ओ मेरे मन के अविनाशी
इस रूप जगत के आर-पार ,
हो रहे व्याप्त अनुभूति तार !
झंकृत हों जागें सातो स्वर
क्षिति से अंबर तक दें सँवार !
अक्षऱ अक्षर में निखर उठो तुम, इस क्षर तन के मधुमासी !
अविरल प्रवाह मय जल धारा
लहरें किरणों से आवर्तित
बिंबित ऊपर चल छायायें
गहरे मे निर्मल थिर अवथित !
क्रम धारा सरि सागर हो रे ,अंतर में रमते सन्यासी !
- प्रतिभा .
Thursday, October 8, 2009
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